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Vedic Administration

स्वयंमेव प्रशासन

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प्रशासन को वैज्ञानिक होने के लिए इसे वैदिक प्रशासन होना आवश्यक है, क्योंकि वैदिक प्रशासन को विज्ञान की दोनों पद्धतियों-आधुनिक विज्ञान की वस्तुनिष्ठ पद्धति एवं वैदिक विज्ञान की आत्मनिष्ठ पद्धति का समर्थन प्राप्त होता है। यदि प्रशासन के अध्ययन को भौतिकी, रसायन, गणित इत्यादि के सिद्धांतों का समर्थन प्राप्न नहीं होता है, तो प्रशासन वैज्ञानिक नहीं हो सकता। आधुनिक विज्ञान के समस्त सिद्धांत वैदिक विज्ञान के समस्त विषयों को धारित करते हैं क्योंकि वैदिक विज्ञान आधुनिक विज्ञान का मूल है।

वैदिक शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति में सहज रूपेण विचार करने एवं प्राकृतिक विधान की विकासात्मक दिशा के अनुसरण में कार्य करने की क्षमता विकसित करती है एवं उसे प्राकृतिक विधानों का उल्लंघन रोकने की प्रेरणा देती है, इसीलिए वैदिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति स्वयं के लिए एवं अन्यों के लिए समस्याएं उत्पन्न नहीं करते। वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य प्रणाली द्वारा बिना विषैले हानिकारक प्रभावों के निवारण एवं उपचार उपलब्ध कराती है एवं एक स्वस्थ व्यक्ति व रोग विहीन समाज का निर्माण करती है ।

उत्तम स्वास्थ्यमय प्रबुद्धता के इस स्वाभाविक वातावरण में नागरिकों के लिए कोई कारण नहीं बनता कि वे राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करें अथवा इसके विरूद्ध विद्रोह करें। यह वैदिक शिक्षा प्रशासन को स्वचालन की ओर अग्रसर करेगी ।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य के संदर्भ में भावातीत ध्यान पर किये गये वैज्ञानिक शोध प्रशासन में इस वैदिक पद्धति द्वारा स्वचालन को पूर्ण करने की व्यावहारिकता को प्रमाणित करते हैं।

प्रशासन का आदर्श प्राकृतिक विधानों का प्रशासन है, जो स्वचालित रूप से, सहज रूपेण एवं स्वाभाविकता से सृष्टि के प्रशासन को पूर्ण सुव्यवस्था के साथ संचालित करता है । इसने हमें विश्वास दिया है कि यदि किसी देश के प्रशासन को राष्ट्रीय विधानों द्वारा वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य की सहायता से प्राकृतिक विधानों द्वारा स्वचालित प्रशासन के समकक्ष ले आया जाये तब संपूर्ण जनसंख्या सदैव प्रबुद्धता, स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता का आनंद उठायेगी एवं यह प्रशासन में स्वचालन निर्मित करने का प्रत्यक्ष साधन सिद्ध होगा।

वैदिक प्रशासन की पूर्णता का आनंद लेने का तात्पर्य वैदिक चेतना को विकसित करना है। केवल व्यक्ति की वैदिक चेतना एवं राष्ट्र की वैदिक सामूहिक चेतना वैदिक प्रशासन के लिए एक मौलिक आधार प्रदान कर सकती है, जो प्राकृतिक विधानों द्वारा प्रशासन है ।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्रशासन का प्रत्येक स्तर राष्ट्र की सामूहिक चेतना द्वारा संचालित होता है इसलिये यह महत्वपूर्ण है कि वैदिक शिक्षा एवं वैदिक स्वास्थ्य वैदिक राष्ट्रीय चेतना के विकास में सहयोगी बने जिससे सुसंबद्ध, एकीकृत सामूहिक चेतना निर्मित हो ।

आज के समय का आव्हान है कि समस्त संगठनों के उन प्रगतिशील रचनात्मक, सौभाग्यशाली नायकों एवं उनके बुद्धिमान सदस्यों व अनुयायियों को आमंत्रित किया जाये, जिनके अंदर राष्ट्रसेवा करने की गंभीर इच्छा हो व वे महर्षि प्रणीत वैदिक प्रशासन के ज्ञान एवं कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहते हों एवं राष्ट्रीय जीवन की सर्वोच्च गुणवत्ता के लिए प्रशासन की श्रेष्ठता के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ें।

वैदिक प्रशासन राष्ट्रीय प्रशासन में समष्टि के प्रशासन की पोषणकारी विशेषताओं को क्रमशः पांच पद्धतियों द्वारा समावेशित करेगा:

  1. शिक्षा के समस्त स्तर पर प्राकृतिक विधानों का अध्ययन-वैदिक अध्ययन जिससे जीवन का प्रत्येक क्षेत्र प्राकृतिक विधानों की अनन्त संगठनात्मक शक्ति की पूर्ण गरिमा में प्रफुल्लित हो ।
  2. एकीकृत राष्ट्रीय चेतना के निर्माण के लिये योगिक फ्रलायर्स के समूह बनाना ‘प्रत्येक सरकार के लिए एक समूह’-सरकार के प्रत्येक स्तर पर-राष्ट्रीय, राज्य, जिला, नगर एवं पंचायत ।
  3. योग (बुद्धिमत्ता का एकीकृत गुण), ज्योतिष (बुद्धिमत्ता की सब कुछ जानने की विशेषता), ग्रहशांति (बुद्धिमत्ता का शांत एवं स्थिर करने का गुण), एवं वास्तु शांति (बुद्धि की संबंधों को धारित करने की विशेषता) के ज्ञान का परिचय, यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन, प्राकृतिक विधानों के पूर्ण समर्थन में हो, सदैव विकासात्मक दिशा में हो एवं राष्ट्रीय प्रशासन, प्रकृति के प्रशासन द्वारा धारित होने से समस्याओं से रहित हो।
  4. इन वैदिक कार्यक्रमों को दीर्घकाल से भारत के समस्त राज्यों में ज्ञानीजनों द्वारा अभ्यास में लाया गया है, किन्तु सरकार द्वारा पूरी जनसंख्या को कभी भी उपलब्ध नहीं कराया गया। इसीलिए संपूर्ण जनसंख्या इस भारतीय ज्ञान-वैदिक ज्ञान से वंचित रही है, जो पूर्णता को प्रदान करने वाला ज्ञान है।
  5. वैदिक प्रशासन में प्रशासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता समस्याओं का निवारण करने की क्षमता होगी। प्राकृतिक विधानों की दैनिक वैदिक जीवनचर्या में समस्याओं को उनके उदित होने से पूर्व निवारण करने की क्षमता है-हेयं दुःखं अनागतम् ।
  6. वैदिक प्रशासन द्वारा शासन, प्रकृति के उन सर्वाधिक मूलभूत नियमों के आधार पर व्यक्ति एवं प्रत्येक समुदाय के पूर्ण विकास के लिए नये नियम बनायेगी, जो तन्मात्राा को प्रफुल्लित करते हैं, जो पंच महाभूतों में विकसित होते है, जो पदार्थ रूप सृष्टि में दृष्टिगत होते हैं। जागृत चेतना का यह मौलिक क्षेत्र-प्रकृति के समस्त नियमों का जीवंत केन्द्र होने से, सृष्टि का आधार होने से, एक मात्रा क्षेत्र है जहां से विधानों की समस्त पोषणकारी विशेषताओं को जीवन के समस्त क्षेत्रों में जीवंत किया जा सकता है। वैदिक प्रशासन की नीतियां एवं कार्यक्रम अपनी शक्ति एवं पोषणकारी प्राधिकार-प्राकृतिक विधानों की अनंत संगठनात्मक शक्ति से प्राप्त करेंगे ।

वैदिक प्रशासन शासन के वृहत प्रयोजन को प्राप्त करेगा, जो संपूर्ण जनमानस को कष्ट, दुःखों, समस्याओं एवं असफलताओं से सुरक्षित करने के लिए है। सरकार के अभिभावकीय दायित्व की मांग है कि नागरिकों को त्रुटियाँ करने से रोकने के लिए कानून बनाये, प्राकृतिक विधान के अनुसरण में उन्हें शिक्षण द्वारा-शांति एवं प्रसन्नता के लिए राजमार्ग प्रदान किया जाये। वैदिक प्रशासन द्वारा भारतीय शासन, भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की बहु प्रतीक्षित अभिलाषाओं एवं वृहत आशाओं को परिपूर्ण करेगा, एवं अजेय भारत-आदर्श भारत स्थापित होगा ।


आधुनिक विज्ञान वैदिक प्रशासन के लाभों को प्रमाणित करता है
  • अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में सुधार ।
  • राष्ट्रीय मनोदशा में सकारात्मकता की वृद्धि ।
  • नगर, प्रांत, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जीवन की गुणवत्ता में सुधार ।
  • समाज में अपराध, अस्थिरता एवं हिंसा में कमी।
  • राष्ट्र प्रमुखों के अधिक सकारात्मक, विकासात्मक कथन एवं कार्य ।
  • संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में प्रगति में वृद्धि ।
  • वृहत संगठनात्मक क्षमता ।
  • समस्या-निदान क्षमता में सुधार ।
  • प्राथमिकताओं के निर्धारण में वृहत क्षमता ।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व की वृहत समझ ।
अब वैदिक प्रशासन को लागू कराने की आवश्यकता

भारतीय प्रशासन की वर्तमान प्रणाली सुव्यवस्थित नहीं है एवं प्रत्येक व्यक्ति इससे परेशान है। राष्ट्रीय जीवन में अत्यधिक भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता, अपराध, नकारात्मकता, निराशा व्याप्त है, सरकार के कार्यालयीन निष्पादन में अत्यधिक विलंब होता है। प्रत्येक व्यक्ति अनुभव करता है कि प्रशासन की प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए ।

अब यह महत्वपूर्ण समय है, राजनीतिक स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद, भारत को प्रशासन के एक आदर्श स्तर पर स्थापित किया जाना चाहिए एवं वास्तव में स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ का आनंद लेना प्रारंभ करना चाहिए ।

यह स्पष्ट है कि परिवर्तन की आवश्यकता काफी पहले से अपेक्षित है, भारत में न्याय की सर्वोच्च सत्ता को हस्तक्षेप करने एवं एक आदर्श प्रशासन की विशेषताओं एवं क्षमताओं को रेखांकित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है । भारत का माननीय सर्वोच्च न्यायालय पूर्ण प्रशासन-वैदिक प्रशासन द्वारा भारत की स्वतंत्रता के साथ न्याय करने के लिए एवं राष्ट्र को प्राकृतिक विधानों की अनन्त क्रिया शक्ति द्वारा बचाने का महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है । विधि की सर्वोच्च शक्ति प्राकृतिक विधानों की अजेय शक्ति है । सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रीय विधि को प्राकृतिक विधानों का बल प्रदान कर सकता है, ताकि देश की राजनीतिक स्वतंत्रता अर्थपूर्ण बन जाये एवं राष्ट्रीय विधि समस्याओं के निवारण करने व राष्ट्रीय जीवन को व्यवस्थित बनाये रखने की क्षमता प्राप्त कर सके । समस्याओं और अपराधों से निवारण राष्ट्र में सुव्यवस्था को बनाये रखने का एकमात्र प्रभावी उपाय है ।

वैदिक प्रशासन को स्थापित करने के लिए यह उत्तम होगा कि समस्त विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जायें, जो युवाओं को वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य एवं वैदिक प्रशासन के ज्ञान द्वारा उनकी चेतना में प्राकृतिक विधानों की पूर्ण क्रिया शक्ति के प्रकटीकरण की जागृति करेगा ।

यह सुझाया जाता है कि भारतीय शासन में राष्ट्रीय विधानों को प्राकृतिक विधानों की अजेय, विकासात्मक शक्ति द्वारा समृद्ध करने के लिए नीति बनाई जाये, ताकि राष्ट्रीय विधान देश के राष्ट्रीय प्रशासन को विघटनकारी बाह्य प्रभावों के विरूद्ध स्थिर करने में समर्थ बना सके। यह भी सुझाया जाता है कि वैदिक प्रशासन की प्रणाली में भारत की युवा शक्ति को शिक्षित करके भारत के प्रशासन का भारतीयकरण किया जाये, जो वैदिक सिद्धांतों- प्राकृतिक विधानों द्वारा प्रशासन की सर्वोच्च गुणवत्ता को प्रकाशित करायेगा ।

आगे यह भी सुझाया जाता है कि सरकार तत्काल प्रभाव से राष्ट्रीय जीवन के समस्त क्षेत्रों में प्रशासन को आदर्श बनाने एवं एक समस्या विहीन राष्ट्र के निर्माण के लिए प्राकृतिक विधानों के ज्ञान को लागू करे। प्राकृतिक विधानों का ज्ञान शिक्षा के समस्त स्तरों पर प्रारंभ करने से शिक्षा पूर्णता को प्राप्त होगी, प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान-समस्त ज्ञान का फल-प्रबुद्धता में त्राुटियों रहित जीवन प्राप्त होगा ।

सौभाग्यपूर्ण यह है कि वैदिक प्रशासन प्राकृतिक विधानों का प्रशासन है यह शाश्वत्, सृष्टि के संविधान के अंतर्गत पूर्ण प्रशासन है। सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सृष्टि के अजेय संविधान के अंतर्गत है, जो सृष्टि के प्रत्येक कण की बुद्धिमत्ता में एवं सम्पूर्ण रूप से सृष्टि में भी निरन्तर जीवंत है ।